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Wednesday, April 9, 2014

समय .......... ('अरमान')


समय बीतता जाता है 
दर्द कहीं थक के 
सुख की म्यान में सो जाता है 


वक्त बेरहम दुश्मन की तरह 
फिर उभार लाता है
शिकायतों का दौर, अश्कों का मौसम
बिछुड़ने का गम
फिर याद आ जातें हैं उसके सितम 


क्यों नहीं रोका उसे
क्यों नहीं रुका वो
थामें क्यूँ नहीं हाथों ने हाथ
वही सवाल कौंधने ल
गते हैं
फ़िर ज़हन में हरदम
..
................ पूनम माटिया 'पूनम'

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