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Sunday, May 10, 2015

‘माँ’ केवल एक शब्द नहीं अपितु एक ग्रन्थ है अपने में ही ......

 कहते हैं कि भगवान ने पृथ्वी पर अपनी अनुपस्थिति को पूर्ण करने को ‘माँ’ बनाई, परन्तु मैं सोचती हूँ क्या देवलोक में माँ नहीं थी ..... माँ की कमी तो उन्हें वहां भी खली तभी सभी देवताओं ने अपने, अपने अंशों को एकत्रित कर ‘माँ अम्बे’ का आवाहन किया अपनी परेशानियों का एक मात्र हल ढूँढने के लिए|
‘माँ’को समर्पित कविताएँ , दोहे और ग़ज़लें इत्यादि पढ़, पढ़ कर कवि,शाइर कवि सम्मेलनों और मुशायरों को लूटते आयें हैं और इस कारण है कि हर बच्चे ,बड़े, पुरुष, स्त्री सभी के मन में अपार आदर, सम्मान और प्यार होता है माँ के लिए| ऐसा नहीं कि पिता के लिए यह स्नेह नहीं होता ........होता है परन्तु माँ के लिए यह अति विशिष्ट होता है क्यूंकि गर्भधारण से शिशु के जन्म तक माँ और बच्चा एक दुसरे को हर पल, हर क्षण महसूसते हैं .....माँ हर एक प्रयास करती है कि जन्म से पहले और फ़िर जन्म के बाद भी उसके बालक को कोई कष्ट छू तक न पाए| बस इस लिए ही बच्चा कहीं भी हो, किसी भी आयु का हो ......माँ उसे दिल से देख लेती है और आँखों से ही अनुभव कर लेती है उसकी परेशानी, उसकी ख़ुशी|
आजकल एक पंक्ति या एक्सप्रेशन बहुत सुनने को मिलता है बच्चों के मुख से ‘माई मॉम इज़ द वर्ल्ड बेस्ट’ यानि ‘मेरी माँ संसार की सबसे अच्छी माँ है’ ......हैरानी होती है न ? अभी बच्चों ने देखा ही कितना संसार है जो ऐसा कह देते हैं कित्नु अगर सोचें तो इसमें हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए| जैसे हर माँ  अपने बच्चे की छोटी से छोटी हर बात जानती–समझती है उसी प्रकार बच्चे भी ‘अपनी माँ’  को जानते हैं, अपना संसार समझते हैं वो बात और है कि बड़े होते, होते उनकी दुनिया भी बड़ी होती जाती है उसमे हर क्षण नए लोग जमा होते जातें है और इस तरह वो माँ जो कभी पूर्ण संसार होती है .....समय बीतते, बीतते एक ‘छोटा सा और कई दफ़े तो नगण्य सा’ हिस्सा भर रह जाती है और फिर हमे देखने को मिलते हैं वो किस्से जहाँ माँ अनाथों की तरह या तो घर के किसी एक कोने में अनचाहे सामान की तरह पड़ी रहती है या किसी वृद्धाश्रम में भेज दी जाती है| 

ऐसा भी कहते हैं न कि ‘पूत कपूत भले हो जाए पर माता भयी न कुमाता’ .... तो माएं तो वृद्धाश्रम में या विपरीत परिस्थितियों में भी अपने बच्चों का बुरा नहीं सोचती| कहीं पढ़ा था कि माँ ने वृद्धाश्रम में अपनी आखिरी साँसे गिनते हुए अपने बेटे से कहा ‘बेटा यहाँ एक कूलर और एक फ्रिज दान कर देना .... बेटे ने आश्चर्यचकित होकर कहा ‘माँ अब क्या जरूरत है, अब तो आप की अंतिम घड़ी है ..तो माँ कहती है कि बेटा!!!!! मैंने तो गुज़ार दी पर शायद तू अपने बुढापे में यह सब सह न पाए|’

लालन पालन में नहीं, थकते उसके पाँव ||
बच्चों पर रखती सदा, माँ ममता की छाँव||
माँ ममता की छाँव, सदा खुद को बिसराए,
पथ निष्कंटक करे, कभी एहसां न जताए ||

अपनी इन पंक्तियों के साथ आज मातृत्व दिवस पर अपनी माँ को नमन करते हुए मैं सम्पूर्ण विश्व की माँओं को बधाई एवं शुभकामनाएं देती हूँ क्यूंकि माएं बेशक कभी अपने  पुत्र , पुत्रियों से नाराज़ भी हो जाएँ कित्नु अपने पोते , पोतियों पे जान न्योछावर करना नहीं छोड़तीं .....शायद इसे ही कहते हैं ‘मूल से प्यारा सूद’ 

पूनम माटिया ‘पूनम’
दिलशाद गार्डन , दिल्ली-
95  

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