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Saturday, October 29, 2016

आकर तुम मत जाना.

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जब आँगन में मेघ निरंतर झर-झर बरस रहे हों
ऐसे में दो विकल हृदय मिलने को तरस रहे हों
जब जल-थल सब एक हुए हों, धरती-अम्बर एकम
शोर मचाता पवन चले जब छेड़-छेड़ कर हर दम
ऐसे में तुम आना प्रियतम! ऐसे में  तुम आना


कंपित हो जब देहनेह की आशा लेकर आना
प्रेम-मेंह की एक नवल परिभाषा लेकर आना
लहरों से अठखेली करता चाँद कभी देखा है?
या आतुर लहरों का उठता नाद कभी देखा है?

चंदा बन के आना प्रियतम! चंदा बन के आना

पल-प्रतिपल आकुल-व्याकुल मन, राह निहारे हारा

तुम आयेना पत्र मिलाना कोई पता तुम्हारा
फागुन बीताबीत गया आषाढ़ कि आया सावन
कब आओगेकब आओगेकब आओगे साजन?

आकर तुम मत जाना प्रियतम! आकर तुम मत जाना
…………
पूनम माटिया

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